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सियासी ड्रामे का ओवरडोज!

अजीत द्विवेदी
आम आदमी पार्टी का बनना और एक राजनीतिक ताकत के रूप में स्थापित होना एक बेहद नाटकीय घटनाक्रम रहा है। भ्रष्टाचार के खिलाफ अन्ना हजारे के आंदोलन से निकली यह पार्टी एक धारणा का प्रतिनिधित्व करती है। वह धारणा मीडिया और प्रचार के जरिए लोगों के दिमाग में बैठाई गई है। अन्ना हजारे का आंदोलन भी प्रचार के जरिए किया गया एक इवेंट था, जिससे देश भर के लोगों में यह धारणा बनाई गई की तत्कालीन मनमोहन सिंह सरकार भ्रष्ट है और उसे बदल देना है। राष्ट्रीय स्तर पर इसका फायदा भाजपा व नरेंद्र मोदी को मिला और दिल्ली में अरविंद केजरीवाल ने इसका फायदा उठाया। यह संयोग है कि उसी समय से नरेंद्र मोदी और अरविंद केजरीवाल दोनों अपनी नाटकीयता से और प्रचार तंत्र के जरिए धारणा बनाने-बिगाडऩे की राजनीति में ही लगे रहे।

अब इस नाटकीयता या सियासी ड्रामे का ओवरडोज हो रहा है। हर बात को लेकर ऐसा ड्रामा रचा जा रहा है, इस तरह की बयानबाजी हो रही है और उसका इतना प्रचार हो रहा है कि वास्तविक मैसेज कहीं विलीन हो जा रहा है। सरकारी साधनों के दम पर आम आदमी पार्टी ने प्रचार का ऐसा तंत्र विकसित किया है कि उसे अपनी हैसियत से कई गुना ज्यादा मीडिया कवरेज मिलती है और ज्यादातर मामलों में सकारात्मक मीडिया कवरेज मिलती है, जिसके दम पर वह वास्तविक घटनाक्रम को दरकिनार कर अपनी पसंद का नैरेटिव स्थापित करने में कामयाब हो जाती है।

राजनीति में नाटकीयता और नेता में अभिनय क्षमता की जरूरत होती है। लेकिन उसकी सीमा होती है। कोई नेता सारे समय अभिनय करता नहीं रह सकता है। फिल्म अभिनेता हर समय अपने कैरेक्टर में रहते हैं। वे वास्तविक जीवन में भी अभिनय ही कर रहे होते हैं। ज्यादातर समय लिखित संवाद बोलते हैं। ड्रामे का कुछ वैसा ही ओवरडोज आम आदमी पार्टी की राजनीति का हो रहा है। उसके नेता सारे समय लिखित पटकथा के मुताबिक काम कर रहे होते हैं और उसी के अनुरूप संवाद बोल रहे होते हैं। हर राजनीतिक घटना को इवेंट में तब्दील करते हैं और उसका फायदा लेने वाले नैरेटिव गढ़ कर मीडिया के जरिए उसका प्रचार कराते हैं। प्रचार का बजट बेहिसाब बढ़ा कर पार्टी की दिल्ली सरकार ने मीडिया के एक बड़े हिस्से को वश में किया है, जो उसकी नाटकीयता का प्रचार करता है। हर नेता में एक अभिनेता होता है और हर राजनीति में कुछ नाटकीयता होती है लेकिन उसकी सीमा है। आप की राजनीति उस सीमा का अतिक्रमण करके काफी आगे निकल गई है।

अभी दिल्ली की नई शराब नीति को लेकर मनीष सिसोदिया के यहां सीबीआई के छापे का मामला देखें तो आम आदमी पार्टी का हर नेता अलग अलग नाटक में लगा है। एक प्रहसन में अरविंद केजरीवाल और मनीष सिसोदिया को पीडि़त बता कर शहीद का दर्जा दिया जा रहा है तो एक प्रहसन में सिसोदिया को महाराणा प्रताप का वंशज बता कर नायक बनाया जा रहा है। पूरे मामले में वस्तुनिष्ठ तरीके से कोई बात नहीं कर रहा है। आम आदमी पार्टी ने या मनीष सिसोदिया ने एक बार यह नहीं कहा है कि नई शराब नीति एक नीतिगत फैसला था, पूरी कैबिनेट ने फैसला किया था और हम उस फैसले पर कायम हैं।

यह भी नहीं कहा जा रहा है कि उस नीतिगत फैसले में क्या कमी थी, जिसकी वजह से उसे वापस लिया गया। यह भी नहीं कहा जा रहा है कि किसी सरकार के नीतिगत फैसले के ऊपर कोई मुकदमा कैसा हो सकता है, अगर उस फैसले से किसी व्यक्ति ने या पार्टी ने निजी लाभ अर्जित नहीं किया है? अपनी नीति का बचाव करने या केंद्रीय एजेंसी की कार्रवाई का तर्कपूर्ण तरीके से जवाब देने की बजाय भावनात्मक बातें की जा रही हैं, शौर्यगाथा सुनाई जा रही है और ड्रामे किए जा रहे हैं।

किसी व्यक्ति ने सोशल मीडिया में ट्विट किया कि सिसोदिया महाराणा प्रताप के वंशज हैं तो उस ट्विट के अरविंद केजरीवाल ने रिट्विट किया और इस पर मुहर लगाई। सवाल है कि अगर वे महाराणा प्रताप के वंशज नहीं होते तो क्या उनके ऊपर कार्रवाई जायज हो जाती या तब पार्टी का जवाब देने का अंदाज अलग होता? जब सत्येंद्र जैन गिरफ्तार हुए तब केजरीवाल ने क्यों नहीं कहा था कि वे भगवान महावीर के वंशज हैं? यह कैसी जातीय मानसिकता है, जिसमें बचाव में अपनी जाति के गौरव का गान हो?

जिस दिन से छापा पड़ा है उस दिन से अलग अलग नाटक चल रहे हैं। पहले दिन यह प्रहसन चला कि सिसोदिया दुनिया के नंबर वन शिक्षा मंत्री हैं। हो सकता है कि वे ब्रह्मांड के नंबर वन शिक्षा मंत्री हों लेकिन उसका शराब नीति से क्या लेना-देना है! पार्टी शराब नीति पर जवाब क्यों नहीं दे रही है? इसके अगले दिन लुकआउट सरकुलर की खबर आई तो उस पर नाटक हुआ। सीबीआई ने सिसोदिया के खिलाफ सरकुलर नहीं जारी किया था, लेकिन सिर्फ मीडिया के सहारे राजनीति करने वाली पार्टी के नेताओं ने इस पर प्रतिक्रिया देनी शुरू कर दी। सिसोदिया ने सीधे प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को चुनौती देते हुए कहा कि ‘यह क्या नाटक है, मैं दिल्ली में घूम रहा हूं और आपको मिल नहीं रहा हूं’! सोचें, क्या दिल्ली के उप मुख्यमंत्री को लुकआउट सरकुलर का मतलब नहीं पता है? क्या वे भगोड़ा घोषित किए जाने या वारंट जारी होने और लुकआउट नोटिस में फर्क नहीं समझते? लुकआउट नोटिस का सरल मतलब यह होता है कि व्यक्ति देश से बाहर नहीं जा सकता है। सोचें, सिसोदिया के खिलाफ नोटिस जारी भी नहीं हुआ लेकिन पार्टी ने पूरी कथा कह डाली।

इसके बाद खुद को विक्टिम बताते हुए सिसोदिया ने कहा कि ‘हम काम करना तभी बंद करेंगे, जब हमें जान से मार दिया जाएगा’। इसके अगले दिन यानी तीसरे दिन यह नैरेटिव बनाया गया कि भाजपा ने सिसोदिया को कहा था कि वे आप तोड़ कर भाजपा के साथ चले जाएं तो सारे केस खत्म कर देंगे। यहीं बात कहते हुए शिव सेना के नेता संजय राउत जेल गए। उन्होंने भी कहा था कि भाजपा की ओर से कहा जा रहा है कि वे शिव सेना तोड़ दें तो सारे मुकदमे खत्म कर दिए जाएंगे। चाहे संजय राउत हों या सिसोदिया हों उनके इस तरह के बयानों से विपक्ष को फायदा हो सकता है। यह नैरेटिव बन सकता है कि भाजपा विपक्षी पार्टियों को तोडऩे के लिए केस करा रही है, एजेंसियों का इस्तेमाल कर रही है। लेकिन अगर सिसोदिया यह बताते कि किसने उनको मैसेज दिया, कब दिया और कैसे दिया तो ज्यादा विश्वसनीयता बनती। अभी यह सिर्फ प्रचार पाने का तरीका लग रहा है। इससे आरोप की विश्वसनीयता नहीं बनती, बल्कि आरोप हास्यास्पद हो जाते हैं।
पिछले कुछ दिनों से मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल अद्भुत नाटकीयता दिखा रहे हैं।

छत्रसाल स्टेडियम में 15 अगस्त के भाषण और उसके दो दिन बाद तालकटोरा स्टेडियम में ‘मेक इंडिया नंबर वन’ मिशन लांच करते समय दिया गया भाषण इसकी मिसाल है। केजरीवाल ने तरह तरह की भाव भंगिमा बनाते हुए कहा कि भगवान ने भारत के लोगों को बेस्ट बनाया, भगवान ने भारत के लोगों को सबसे इंटेलीजेंट बनाया, भगवान ने भारत को बनाते समय इसे सब कुछ दिया, पहाड़ दिए, नदियां दीं, जंगल और खनिज दिए। दिल्ली में बैठ कर वे जिस तरह से देश की जनता को संबोधित कर रहे हैं उससे उनकी अति महत्वाकांक्षा जाहिर होती है। असल में ऐसा लग रहा है कि नाटक करते करते आम आदमी पार्टी के नेता उसे हकीकत समझने लगे हैं और उसी में जीने लगे हैं।

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