विपक्षी एकता का प्रयास भी बंद
संसद का बजट सत्र समाप्त हो गया। बजट सत्र के दूसरे चरण में एक महीने तक संसद की कार्यवाही चली लेकिन इस दौरान विपक्षी पार्टियों के बीच एकता बनाने का प्रयास भी नहीं हुआ। सभी विपक्षी पार्टियां अपनी अपनी राजनीति करती रहीं। आमतौर पर संसद सत्र के दौरान या उससे पहले विपक्षी पार्टियों की बैठक होती थी, जिसमें सत्र के दौरान फ्लोर कोऑर्डिनेशन के लिए सभी दलों में विचार होता था। ऐसे मुद्दों की पहचान होती थी, जिन पर सरकार को जिम्मेदार ठहरा कर उसके घेरा जाता था। लेकिन इस बार ऐसी कोई मीटिंग नहीं हुई।
सवाल है क्यों विपक्षी पार्टियों ने बैठक करके एकता बनाने और सरकार को घेरने की साझा रणनीति बनाई? क्या पांच राज्यों के चुनाव नतीजों की वजह से ऐसा हुआ? पांच राज्यों के चुनाव नतीजों के बाद आम आदमी पार्टी को छोड़ कर बाकी विपक्षी पार्टियां औंधे मुंह गिरी थीं। कांग्रेस सभी राज्यों में बुरी तरह हारी तो तृणमूल कांग्रेस को गोवा अभियान इस बुरी तरह से पिटा की उसके नेता काफी समय तक उससे नहीं उबर पाएंगे। समाजवादी पार्टी और बहुजन समाज पार्टी को भी सदमे से उबरने में समय लगेगा। संभवत: इस वजह से किसी पार्टी की ओर से पहल नहीं की गई।
संसद के इस सत्र में विपक्षी पार्टियों के पास कई ऐसे मुद्दे थे, जिस पर साझा रणनीति के तहत काम करके सरकार को घेरा जा सकता था। महंगाई का मुद्दा सबसे बड़ा था। संसद सत्र के बीच सरकार हर दिन पेट्रोल और डीजल की कीमत बढ़ाती रही लेकिन इस मसले पर विपक्षी पार्टियां कुछ नहीं कर पाईं। आखिरी हफ्ते में राज्यसभा में जरूर विपक्ष ने यह मुद्दा उठाया लेकिन सरकार ने बहस नहीं होने दी और एक दिन पहले ही सत्र का समापन कर दिया। लोकसभा में विपक्षी पार्टियां यह भी नहीं कर पाईं।
ऐसा नहीं है कि लोकसभा में विपक्ष के पास संख्या नहीं है। सभी विपक्षी पार्टियों को मिला कर दो सौ से ज्यादा सांसद हैं और अगर पार्टियों में एकता बने तो दो सौ सांसद सरकार को चर्चा के लिए मजबूर कर सकते हैं। अगर सभी पार्टियां एकजुट हो जाती तो संसद के बाहर भी प्रदर्शन करके सरकार पर दबाव बनाया जा सकता था। लेकिन छह फीसदी से ज्यादा महंगाई दर होने, हर दिन पेट्रोलियम उत्पादों की कीमत बढऩे, खाने-पीने की चीजों की बढ़ती महंगाई के बावजूद विपक्ष कोई असरदार प्रदर्शन नहीं कर सका। सारी पार्टियां केंद्रियों एजेंसियों की मनमानी से परेशान हैं। तृणमूल कांग्रेस से लेकर एनसीपी, शिव सेना और आम आदमी पार्टी तक के नेताओं-मंत्रियों के खिलाफ कार्रवाई हो रही है लेकिन इस मसले पर भी विपक्षी पार्टियों की ओर से कोई पहल नहीं की गई। विपक्ष के बंटे होने के कारण सरकार ने भी चिंता नहीं की।