ठगों के लिए हमेशा खुले रहते हैं सचिवालय के गेट
देहरादून। यदि आपको किसी काम से सचिवालय जाना हो तो वहां घुसने के लिए आपको नाकों चने चबाने पड़ते हैं। लेकिन वहां के गेट ठगों के लिए हमेशा खुले रहते हैं। न किसी तरह की सुरक्षा जांच और न ही किसी तरह के पास के आवश्यकता। ये ठग यहां बैठकर लाखों की ठगी को अंजाम दे रहे हैं। जी हां यह हम नहीं कह रहे हैं, यह तफ्तीश कर रही है वह घटना जिसकी पुलिस जांच कर रही है। दो दिन पहले ऐसा एक मामला पटेलनगर पुलिस के सामने आया, खुद को देहरादून में सचिवालय और उच्च प्रशासनिक सरकारी पदों पर तैनात बताकर चार जालसाजों ने दस युवकों को विभिन्न विभागों में नौकरी लगवाने का झांसा देकर 62 लाख रुपये ठग लिए। आरोपितों ने युवकों को इंटरव्यू के लिए बाकायदा सचिवालय बुलाया और फर्जी नियुक्ति पत्र भी जारी किए। बाद में पता लगा कि जिन विभागों के नियुक्ति पत्र जारी किए गए हैं, उन विभागों में भर्ती निकली ही नहीं। पटेलनगर कोतवाली पुलिस ने आरोपितों के खिलाफ मुकदमा दर्ज कर लिया है।
पुलिस के अनुसार मुजफ्फरनगर (उत्तर प्रदेश) के गोशाला नदी रोड निवासी मनीष कुमार ने बताया कि वह अपने परिचित बृजपाल निवासी मेरठ के साथ वर्ष 2018 में देहरादून आए थे। बृजपाल ने मनीष की मुलाकात सर्कुलर रोड क्षेत्र में रहने वाले कमल किशोर पांडे और उसके भाई चेतन पांडे से करवाई। कमल के माध्यम से मनीष की मुलाकात ललित बिष्ट निवासी पीडब्ल्यूडी कालोनी और मनोज नेगी से हुई। चेतन पांडे ने बताया कि वह सूचना विभाग देहरादून में सूचना अधिकारी के पद पर तैनात है। कमल किशोर पांडेय ने खुद को प्रशासनिक अधिकारी, ललित बिष्ट ने सचिवालय में सचिव और मनोज नेगी ने खुद को अपर सचिव के पद पर तैनात बताया।
आरोपितों ने मनीष को झांसे में लिया और कहा कि वह कई युवकों की विभिन्न पदों पर नौकरी लगवा चुके हैं। अगर उत्तराखंड में नौकरी करना चाहते हैं तो यहां कुछ रिक्तियां आई हुई हैं। उन्हें व उनके परिचितों की अलग-अलग विभागों में नौकरी लगवा दी जाएगी। प्रति व्यक्ति नौ लाख रुपये खर्च होगा, जो अधीनस्थ व उच्च अधिकारियों को देना पड़ेगा। आरोपितों पर विश्वास करते हुए मनीष ने 26 नवंबर को अपने भाई व परिचितों के शैक्षिक प्रमाण पत्र समेत अन्य औपचारिक प्रमाण पत्र और अग्रिम भुगतान के रूप में चार लाख रुपये चेतन पांडेय व कमल पांडे को दिए। इसके बाद विभिन्न तिथियों को 58 लाख रुपये दिए। सात मई 2019 को कमल ने पीडि़त व परिचितों को सचिवालय बुलाया और मनोज नेगी से मिलवाया।
15 मई को चेतन पांडे व कमल पांडे ने उन्हें दोबारा सचिवालय बुलाया और ललित बिष्ट ने उनका इंटरव्यू लिया। 28 मई को आरोपितों ने उनका दून अस्पताल में मेडिकल कराया। इसके बाद चार जून 2020 को ललित बिष्ट व मनोज नेगी ने सचिवालय बुलाकर अंगूठे के निशान लिए व हस्ताक्षर करवाए और पदों के बारे में बताया। छह जून को चेतन पांडे ने उन्हें सचिवालय बुलाकर फर्जी नियुक्ति पत्र सौंपे। इंस्पेक्टर प्रदीप राणा ने बताया कि आरोपित कमल किशोर पांडे, चेतन पांडे, ललित बिष्ट और मनोज नेगी के खिलाफ मुकदमा दर्ज कर लिया गया है। युवक जब आरोपितों के दिए नियुक्ति पत्र लेकर संबंधित विभागों में गए तो पता चला कि वहां कोई भर्ती निकली ही नहीं। यह जानकर उनके होश उड़ गए। पीडि़तों ने जब आरोपितों से संपर्क करने की कोशिश की तो सभी के मोबाइल बंद आए।
उत्तर प्रदेश और हरियाणा के रहने वाले हैं पीड़ित
इंस्पेक्टर प्रदीप राणा ने बताया कि सभी पीड़ित उत्तर प्रदेश व हरियाणा के रहने वाले हैं। पीड़ितों में गोविंद कुमार, सचिन कुमार, मनीष कुमार, निशांत कर्णवाल, समीर, मुकुल चोपड़ा, सचिन, अक्षय कुमार और विनोद कुमार सभी मुजफ्फरनगर (उत्तर प्रदेश) के रहने वाले हैं। ललित कुमार यमुनानगर (हरियाणा) के निवासी हैं। हर पीड़ित से चार लाख से साढ़े सात लाख रुपये की ठगी हुई है। मामले की जांच कर रहे एसआइ कुंदन राम ने बताया, अब तक हुई जांच में पता चला है कि ठगी करने वाले चारों आरोपितों में कोई भी सचिवालय में तैनात नहीं है। ऐसे में सवाल उठता है कि युवकों को लेकर वह सचिवालय में कैसे घुस गए। इसमें अंदर के स्टाफ की भी मिलीभगत की संभावना है। विवेचना में पता चलेगा कि आरोपितों के ऊपर किसका हाथ है।