हिमाचल के फैसले से बड़ा संदेश
कांग्रेस पार्टी ने हिमाचल प्रदेश में सुखविंदर सिंह सुक्खु को मुख्यमंत्री बना कर बड़ा संदेश दिया है। इस चुनाव से पहले तक हॉली लॉज कांग्रेस की सत्ता का केंद्र था। पूरी पार्टी के लिए वीरभद्र सिंह और उनके जाने के बाद उनका परिवार सबसे मजबूत खूंटा था। तभी पार्टी ने चुनाव लडऩे में कोई जोखिम नहीं लिया था। दिवंगत वीरभद्र सिंह की प्रतिभा सिंह को प्रदेश अध्यक्ष बनाया था ताकि पार्टी खूंटे से बंधी रहे। इसके साथ साथ पार्टी ने दूसरे क्षत्रपों को भी कुछ न कुछ देकर संतुष्ट किया था। सुक्खू को चुनाव अभियान समिति का अध्यक्ष बनाया था तो मुकेश अग्निहोत्री पहले से विधायक दल के नेता थे। टिकट बंटवारे में भी प्रदेश के हर क्षत्रप की पसंद से कुछ न कुछ लोगों को एडजस्ट किया गया था। ऐसा इसलिए भी किया गया था ताकि किसी के पास इतने विधायक न हों कि वह कोई खेला कर सके।
चुनाव के बाद जब मुख्यमंत्री चुनने की बारी आई तो तमाम ड्रामे के बावजूद पार्टी ने सुखविंदर सिंह सुक्खू को नेता चुनवा दिया। अब इस पर बहस हो सकती है कि पार्टी आलाकमान ने उनको बनवाया या उन्होंने ताकत दिखा कर कुर्सी हासिल की। लेकिन यह सही है कि राहुल गांधी ने 2013 में तब के मुख्यमंत्री वीरभद्र सिंह के विरोध के बावजूद सुक्खू को प्रदेश अध्यक्ष बनवाया था और छह साल तक बनाए रखा था। कांग्रेस के जानकार सूत्रों का कहना है कि राहुल ने पहले से तय कर रखा था कि पार्टी जीती तो सुक्खू मुख्यमंत्री होंगे। यह भी कहा जा रहा है कि प्रियंका गांधी वाड्रा चाहती थीं कि प्रतिभा सिंह को बनाया जाए, लेकिन अंत में फैसला राहुल गांधी ने कराया।
इस फैसले का एक बड़ा संदेश इस बात से गया है कि सुक्खू के पिता बस ड्राइवर थे। इस बात पर फोकस बनवाया गया है कि कांग्रेस ने एक बस ड्राइवर के बेटे को मुख्यमंत्री बनवाया है। सुक्खू के पिता राज्य परिवहन निगम की बस चलाते थे। इस फैसले के बाद कांग्रेस के आईटी सेल और कांग्रेस समर्थकों ने सोशल मीडिया में प्रचार कर रखा है कि राष्ट्रीय अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खडग़े मिल मजदूर के बेटे हैं, अशोक गहलोत सडक़ों पर जादू दिखाने वाले के बेटे हैं, भूपेश बघेल के पिता किसान थे और तीसरे मुख्यमंत्री सुक्खू के पिता बस ड्राइवर थे। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के चाय वाला होने के नैरेटिव के मुकाबले यह कांग्रेस का नैरेटिव है।
एक बड़ा मैसेज यह भी है पार्टी अपने पुराने और निष्ठावान कार्यकर्ताओं को समय आने पर सम्मान देगी और पद भी देगी। कांग्रेस में पिछले कुछ समय से इस बात की बहस हो रही थी कि जिस तरह से भाजपा अपने उन नेताओं को तरजीह देती है, जो अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद से निकले होते हैं उसी तरह से कांग्रेस को भी एनएसयूआई से निकले नेताओं को महत्व देना चाहिए। एनएसयूआई से निकले नेता का मतलब है, कि जो कम से कम 30-40 साल से कांग्रेस में हो। सुखविंदर सिंह सुक्खू इसकी मिसाल हैं। उन्होंने कांग्रेस के छात्र संगठन एनएसयूआई से राजनीति शुरू की थी और उसके अध्यक्ष बने थे।