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बुलडोजर का इंजन चलता रहेगा

हरिशंकर व्यास

उत्तर प्रदेश सरकार बुलडोजर का चुनिंदा इस्तेमाल कर रही है। उत्तर प्रदेश की देखा-देखी राजधानी दिल्ली में भी बुलडोजर से न्याय किया गया और मध्य प्रदेश में भी इसका प्रयास हुआ है। लेकिन अंतत: बुलडोजर का इस्तेमाल सामाजिक विभाजन बढ़ाने और समाज के सामने नया संकट खड़ा करने का कारण बनने वाला है। उत्तर प्रदेश के प्रयागराज में 10 जून को जुमे की नमाज के बाद प्रदर्शन हुए, जिसके दौरान हिंसा भी हुई। उसके दो दिन बाद 12 जून को एक आरोपी का पूरा घर गिरा दिया गया। यह कार्रवाई जिस अंदाज में हुई उससे लगा कि सरकार ने जुमे की नमाज के बाद हुई हिंसा का बदला लेने के लिए की है। तभी अब जब उत्तर प्रदेश सहित कई भाजपा शासित राज्यों में ‘अग्निपथ’ योजना के विरोध में हिंसा हो रही है, ट्रेनें जलाई जा रही हैं और रेलवे स्टेशनों पर तोड़-फोड़ हो रही है तो यह सवाल उठ रहा है कि अब क्यों नहीं बुलडोजर चलाए जा रहे हैं? आरोपियों की पहचान क्यों नहीं की जा रही है, उनके पोस्टर बनवा कर क्यों नहीं लगाए जा रहे हैं? सरकारी संपत्ति को हो रहे नुकसान की भरपाई उनसे क्यों नहीं कराई जा रही है?

जाहिर है बुलडोजर एक खास समुदाय के लिए आरक्षित है। बुलडोजर का मकसद कानून का राज बनाना या कानून का डर बैठाना नहीं है, बल्कि उसके जरिए यह मैसेज देना है कि अमुक समुदाय को ठीक किया जा रहा है। इससे तात्कालिक राजनीतिक लाभ तो मिल रहा है लेकिन लंबे समय के लिए समाज का ताना-बाना इस तरह डैमेज हो रहा है कि बाद में उसे रिपेयर नहीं किया जा सकेगा। देश के 20 करोड़ मुसलमानों के मन में पराएपन का भाव जितना गहरा होगा, समाज के अंदर तनाव उतना बढ़ता जाएगा। एक निश्चित सीमा के बाद यह तनाव टूट का कारण बन सकता है। पहले ही हिजाब और हलाल के विवाद से या गौरक्षा और हर मस्जिद में शिवलिंग की तलाश से विभाजन बढ़ा है। अब अगर बुलडोजर से इसी तरह चुनिंदा कार्रवाई चलती रही तो पूरे देश में सचमुच पानीपत का मैदान बनने से कोई नहीं रोक सकता है। तब जो आग लगेगी उसकी सिर्फ कल्पना की जा सकती है।

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