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समुद्र में भारत का डंका

वेद प्रताप वैदिक
भारत की नौसेना ने आइएनएस विक्रांत नामक विमानवाहक पोत को समुद्र में उतारकर सारी दुनिया में भारत की शक्ति का डंका बजा दिया है। भारत के पास पहले भी एक विमानवाहक पोत था लेकिन वह ब्रिटेन से लिया हुआ था लेकिन यह विमानवाहक पोत खुद भारत का अपना बनाया हुआ है। इस समय ऐसे पोतों का निर्माण गिनती के आधा दर्जन देश ही कर पाते हैं। उन्हें सारी दुनिया महाशक्ति राष्ट्र ही कहती है।

भारत के इस विक्रांत ने उसे अमेरिका, चीन, रूस, फ्रांस, ब्रिटेन और जर्मनी की तरह महाशक्ति राष्ट्रों की श्रेणी में ला खड़ा किया है। यह उपलब्धि उतनी ही बड़ी है, जितनी अटलबिहारी वाजपेयी के जमाने में हुई परमाणु विस्फोट की थी लेकिन इसमें और उसमें इतना फर्क है कि पोखरन के उस विस्फोट के समय लगभग सभी परमाणु शक्ति संपन्न राष्ट्र बुरी तरह से बौखला गए थे और पाकिस्तान भी भारत की नकल पर उतारु हो गया था लेकिन अब न तो कोई महाशक्ति बौखलाई है और न ही पाकिस्तान इस स्थिति में है कि वह विक्रांत की तरह अपना कोई विमानवाहक पोत अगले कई दशकों में खड़ा कर सके।

भारत को मिले इस गौरव के लिए हमारे इंजीनियरों, विशेषज्ञों, फौजियों, सरकारी और सैकड़ों निजी कंपनियों को इसका श्रेय है लेकिन आश्चर्य है कि इसका श्रेय लेने के लिए भाजपा ओर कांग्रेस के नेता आपस में खींचातानी कर रहे हैं। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने इसे भारत की अपूर्व उपलब्धि बताया, यह ठीक ही है। उनके कार्यकाल में वह बनकर तैयार हुआ तो वे उसका विमोचन नहीं करते तो कौन करता? यह किसी व्यक्ति-विशेष की नहीं, भारत की उपलब्धि है।

इस पोत के निर्माण में हमारे सैकड़ों अफसरों ने ब्रिटेन जाकर प्रशिक्षण प्राप्त किया है। यह कई दशकों के प्रयत्न से बनकर तैयार हुआ है। इसके निर्माण के दौरान 40,000 से ज्यादा लोगों को रोजगार मिला है। इसमें 1500 टन स्टील लगा है। इस पोत पर 30 विमान तैनात किए जा सकते हैं। इसमें 1600 कर्मचारी होंगे। इसके निर्माण में 20 हजार करोड़ रु. खर्च हुए हैं लेकिन इसका 85 प्रतिशत पैसा भारत में लौट आया है। यह ठीक है कि अमेरिका, चीन और ब्रिटेन जैसे देशों के पास इससे भी काफी बड़े विमानवाहक पोत हैं लेकिन भारत में तो अभी इसका शुभारंभ हुआ है।

इससे अन्य फौजी उपकरण भारत में बनाने का जो उत्साह पैदा होगा, उसकी कल्पना हम कर सकते हैं। विक्रांत पोत हमारे राष्ट्रीय आत्मविश्वास को सुदृढ़ बनाने में विशेष योगदान करेगा। भारत की जल-सीमाओं को तो यह पोत अब सुरक्षित करेगा ही अब हिंद महासागर में बाहरी राष्ट्रों की दादागीरी को भी नियंत्रित करने में इसका सशक्त योगदान होगा। इस मौके पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने छत्रपति शिवाजी के सामुद्रिक शौर्य को याद करके भारतीय युद्ध-प्रतिभा का सिक्का दुनिया के सामने जमाया।

उन्होंने एक और महत्वपूर्ण काम किया। वह यह कि हमारे नौसेना के ध्वज से ब्रिटिश प्रतीक चिन्ह ‘क्रास ऑफ सेंट को हटवाकर उसकी जगह शिवाजी के अष्टकोणीय प्रतीक के साथ ‘शं नो वरूण:’ वेदमंत्र भी जड़वा दिया। जैसे कभी हमारे राष्ट्रपति भवन से ‘यूनियन जैक’ की जगह तिरंगा लहराया था, वैसी ही एतिहासिक भूल सुधार यह किया गया है।

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