चीन से ही दक्षिण एशिया में अलग थलग!
हरिशंकर व्यास
भारत की विदेश नीति शांतिपूर्ण सहअस्तित्व की रही है। परंतु क्या आज कहा जा सकता है कि भारत अपने पड़ोस में शांति और सहअस्तित्व के साथ रह रहा है? असल में भारत अपने पड़ोस में यानी दक्षिण एशिया में भी अलग थलग पड़ा है और ऐसा भारत की विदेश नीति की गड़बडिय़ों के कारण नहीं है। इसके दूसरे कारण हैं। एक कारण यह है कि भारत आबादी और आकार में बड़ा होने के बावजूद अपनी ऐसी वैश्विक आर्थिक, कूटनीतिक या सामरिक ताकत नहीं बना सका, जिससे पड़ोसी देश डर के साथ सम्मान करें। दूसरा कारण है कि चीन भारत को अलग थलग करना चाहता है, और वह इसमें सफल है। चीन ने ऐसी आर्थिक व सामरिक कूटनीति की है कि उसने दक्षिण एशिया के ज्यादातर देशों को अपनी कॉलोनी बना डाला है। वे उसके असर में हैं और भारत की परवाह नहीं करते हैं।
इसे सिर्फ दो हालिया उदाहरणों से समझे। दोनों उदाहरण चीन से जुड़े हैं। श्रीलंका में आर्थिक और बड़ा राजनीतिक संकट आया तो चीन पल्ला झाड़ कर खड़ा रहा, जबकि श्रीलंका की तबाही में उसका बड़ा हाथ है। उसने श्रीलंका की मदद नहीं की। श्रीलंका की मदद भारत ने की। भारत ने उसे तेल भेजा और अनाज सहित तमाम दूसरी जरूरत की चीजें भेजीं, जिसे श्रीलंका ने सार्वजनिक रूप से लिया। इसके बावजूद श्रीलंका ने भारत की परवाह नहीं करते हुए चीन के जासूसी जहाज को अपने बंदरगाह पर ठहरने की इजाजत दी। यह घटना पिछले महीने की है। भारत ने विरोध किया। इस पर श्रीलंका ने चीन से जहाज रोकने को भी कहा पर जब चीन अड़ा रहा तो श्रीलंका ने 16 से 22 अगस्त तक जहाज को बंदरगाह पर रूकने दिया। इस जहाज का मकसद भारत के परमाणु और अन्य सामरिक संस्थाओं की जासूसी का बताते है।
दूसरी खबर 16 सितंबर की है। श्रीलंका के राष्ट्रपति रानिल विक्रमसिंघे ने बंदरगाह मामले का जिक्र किया। कहा कि यह दुर्भाग्य है कि श्रीलंका को पंचिंग बैग बनाया जा रहा है यानी दोनों तरफ से उस पर हमले हो रहे हैं। इसके साथ ही उन्होंने कहा कि हिंद महासागर में बड़ी ताकतों की प्रतिद्वंद्विता में वह पार्टी नहीं बनना चाहता है। उन्होंने कहा कि श्रीलंका नहीं चाहता है कि प्रशांत महासागर का विवाद हिंद महासागर में पहुंचे। वह किसी भी सैन्य गतिविधि का हिस्सा नहीं बनेगा। श्रीलंका का इशारा भारत की ओर है। भारत की तमाम मदद के बावजूद उसने साफ कहा है कि अगर भारत और चीन के बीच किसी किस्म का टकराव होता है तो वह किसी तरह से इसका हिस्सा नहीं बनेगा। सोचें, भौगोलिक सीमा के साथ साथ श्रीलंका के साथ भारत का सांस्कृतिक और नस्ली रिश्ता भी है और ऊपर से भारत ने हमेशा उसकी मदद की है, इसके बावजूद उसने भारत के साथ खड़े होने से इनकार किया है।
यह स्थिति सिर्फ श्रीलंका की नहीं है। नेपाल के साथ अलग भारत के संबंध बिगड़े हैं। चीन का वहां ऐसा दबदबा बना है कि नेपाल सिर्फ तटस्थ नहीं है, बल्कि वहा भारत विरोधी हो गया है। नेपाल में भारत विरोध इतना बढ़ गया है कि पिछले दिनों लिपूलेख और कालापानी में भारत के सडक़ और पुल बनाने का नेपाल ने भारी विरोध किया और कहा कि यह उसका इलाका है। उसके सैनिक आए दिन सीमा पार भारतीयों पर कार्रवाई कर रहे हैं। भारतीय वस्तुओं का नेपाल में बहिष्कार हो रहा है और अब अग्निपथ योजना से भी नेपाल ने अपने लोगों को अलग कर दिया है। बुद्ध की सॉफ्ट डिप्लोमेसी का कार्ड भारत के हाथों से छीनने के लिए चीन ने नेपाल के लुम्बिनी यानी बुद्ध के जन्मस्थान पर हजारों करोड़ रुपए का निवेश किया है। इतना ही नहीं यह प्रचार भी किया है कि उन्हें गया में ज्ञान प्राप्त नहीं हुआ था, बल्कि जन्म के साथ ही बुद्ध को ज्ञान प्राप्त था।
पाकिस्तान पहले से भारत का दुश्मन देश है। उसने ऐलान किया हुआ है कि चीन उसका ऑल वेदर फ्रेंड है। चीन ने दोनों तरह से पाकिस्तान को अपने नियंत्रण में लिया हुआ है। उसने उसकी मदद की है और वन बेल्ट, वन रोड योजना उसके इलाके में शुरू की है तो साथ ही कर्ज देकर भी उसको अपने जाल में फंसाया है। चीन और पाकिस्तान की दोस्ती ऐसी है कि पाकिस्तान की सरजमीं से भारत के खिलाफ आतंकवादी गतिविधियां चला रहे आतंकियों को भारत संयुक्त राष्ट्र संघ में अंतरराष्ट्रीय आतंकवादी घोषित नहीं करा पा रहा है। दुनिया के सभ्य और लोकतांत्रिक देशों की मदद से भारत जब भी इस तरह के प्रस्ताव संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद में लाता है तो चीन उसे रूकवा देता है। अफगानिस्तान में तालिबान के शासन के साथ भी चीन के जैसे संबंध हैं वैसे पाकिस्तान के भी नहीं हैं। तालिबान के कट्टरपंथियों को भी चीन से कोई शिकायत नहीं है। यहां तक कि उइगर मुसलमानों पर होने वाले जुल्म को भी तालिबान ने स्वीकार किया है।
उधर म्यांमार के सैन्य शासन को चीन का समर्थन है तो भूटान के साथ भी उसने सीमा को लेकर ऐसा समझौता किया है, जिससे भारत को आने वाले दिनों में बड़ी मुश्किलों का सामना करना पड़ सकता है। ध्यान रहे भूटान के कई हिस्सों पर चीन दावा करता है और वो ऐसे हिस्से हैं, जहां तक पहुंचने के लिए अरुणाचल प्रदेश से होकर जाना होगा। इस तरह चीन भूटान के बहाने भारत की जमीन पर दावा कर रहा है। बांग्लादेश भी