सामाजिक कुरीतियों पर प्रहार करती ‘खोली का गणेश‘
– अविनाश ध्यानी के निर्देशन में बनी फिल्म को खूब सराह रहे दर्शक
– प्रभावशाली कहानी और दमदार अभिनय की बदौलत फिल्म दर्शकों को बांधने में रही सफल
देहरादून। उत्तराखंडी फिल्म खोली का गणेश इन दिनों देहरादून के मॉल ऑफ देहरादून और सेंट्रियो मॉल स्थित पीवीआर में हाउसफुल चल रही है। इस गढ़वाली फिल्म को देखने के लिए बड़ी संख्या में दर्शक हॉल में पहुंच रहे हैं। दमदार अभिनय और प्रभावशाली कहानी की बदौलत यह फिल्म दर्शकों को अंत तक बांधने में सफल साबित हो रही है। फिल्म के डायरेक्टर- निर्देशक अविनाश ध्यानी ने इस फिल्म के माध्यम से सामाजिक कुरीतियों मसलन जात-पात और नशे पर प्रहार किया है। इस फिल्म में अभिनेता विनय जोशी ने दमदार अभिनय किया और उनकी भूमिका को दर्शक खूब सराह रहे हैं। इसके अलावा शुभम सेमवाल और सुरुचि सकलानी के अभिनय ने भी फिल्म में जान डाल दी है।
इस फिल्म को देखने के लिए जागर सम्राट पद्मश्री प्रीतम भरतवाण भी पहुंचे। उन्होंने फिल्म की भरपूर सराहना की और भावुक होते हुए कहा कि हमारे समाज को ऐसी फिल्मों और कलाकारों की आवश्यकता है, जो जात-पात के भेदभाव और नशे जैसी बुराइयों से ऊपर उठने का मार्ग दिखा सकें। 18 अप्रैल को रिलीज़ हुई फिल्म ‘खोली का गणेश’ ने अपनी प्रभावशाली कहानी, दमदार अभिनय और गहरे सामाजिक संदेश के चलते दर्शकों का दिल जीत लिया है। इस फिल्म को लिखा, निर्देशित और निर्मित किया है अविनाश ध्यानी ने, और यह फिल्म न केवल दर्शकों बल्कि आलोचकों और मीडिया से भी भरपूर सराहना बटोर रही है।
फिल्म में विनय जोशी ने भावपूर्ण गीतों के ज़रिए भी फिल्म को एक अलग ही ऊँचाई दी है। फिल्म की स्टारकास्ट में दीपक रावत , रश्मि नौटियाल, राजेश नौगाईं, गोकुल पंवार, श्वेता थपलियाल, सुशील रणकोटी और अरविंद पंवार जैसे अनुभवी कलाकार शामिल हैं, जिन्होंने अपने किरदारों में पूरी सच्चाई और गहराई दिखाई है।
उत्तराखंड की पृष्ठभूमि में रची-बसी ‘खोली का गणेश’ आज भी समाज में मौजूद जातिगत भेदभाव जैसे संवेदनशील विषय को उठाती है। यह फिल्म न केवल एक मार्मिक कथा कहती है, बल्कि समाज के सामने एक आईना भी रखती हैकृजिसमें साफ दिखता है कि कैसे आधुनिकता के बावजूद ये कुरीतियां आज भी हमारे बीच जीवित हैं। अविनाश ध्यानी का निर्देशन उनकी संवेदनशीलता और ईमानदारी को दर्शाता है। ‘खोली का गणेश’ को उत्तराखंडी सिनेमा में एक मील का पत्थर माना जा रहा हैकृजो क्षेत्रीय फिल्मों की दिशा और दशा को बदल सकता है।
फिल्म की सिनेमैटोग्राफी (छायांकन) बेहद खूबसूरत है, जिसे रमेश सामंत ने बखूबी अंजाम दिया है। फिल्म का संगीत, जिसे अमित वी कपूर ने तैयार किया है, कहानी को एक और भावनात्मक परत देता है। अमित खरे और प्रतीक्षा बमरारा की मधुर आवाज़ें गीतों में आत्मा फूंक देती हैं, जबकि मेघा ध्यानी, मुदित बौठियाल और अखिल मौर्य जैसे संगीत संयोजकों ने हर रचना को बारीकी और प्रोफेशनल अंदाज़ में सजाया है।
एडिटर धनंजय ध्यानी ने फिल्म के सभी पहलुओं को बखूबी जोड़ते हुए कहानी को प्रवाह और गहराई दी है। उत्तराखंड की प्राकृतिक सुंदरता को फिल्म में बखूबी दर्शाया गया हैकृजैसे जाखोल, चकराता और माकटी की हरियाली से भरपूर लोकेशनों को खूबसूरती से फिल्माया गया है। बिहाइंड द सीन, एक्जीक्यूटिव प्रोड्यूसर रेज़ा खान और लाइन प्रोड्यूसर जीत मैला गुरंग की मेहनत हर फ्रेम में साफ़ झलकती है।
फिल्म को लेकर अविनाश ध्यानी कहते हैं कि फिल्म बनाना केवल पहला कदम है, असली चुनौती है इसे देशभर के दर्शकों तक पहुँचाना। वितरकों विकास जैन और जयवीर सिंह पंगाल का पैन इंडिया सपोर्ट न होता तो यह फिल्म उस मुकाम तक नहीं पहुँच पाती जिसकी वह हक़दार है। उनकी टीम का सामूहिक प्रयास न केवल एक प्रभावशाली सिनेमाई अनुभव देता है, बल्कि समाज के उन मुद्दों पर भी चर्चा शुरू करता है जिन पर अक्सर चुप्पी रहती है।