नरेंद्र मोदी और अंग्रेजी हटाओ
वेद प्रताप वैदिक
गुजरात के स्कूलों में 5 जी की तकनीक के बारे में बोलते हुए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कमाल कर दिया। उन्होंने प्रधानमंत्री की हैसियत से ‘अंग्रेजी की गुलामी’ के खिलाफ जो बात कह दी है, वह बात आज तक भारत के किसी प्रधानमंत्री की हिम्मत नहीं हुई कि वह कह सके। मोदी ने ‘अंग्रेजी की गुलामी’ शब्द का प्रयोग किया है, जिसके बारे में पिछले 60-70 साल से मैं बराबर बोलता और लिखता रहा हूँ और अपने इस विचार को फैलाने की खातिर मैं जेल भी काटता रहा हूँ और अंग्रेजी्भक्तों का कोप-भाजन भी बनता रहा हूँ।
देश की लगभग सभी पार्टियों के सर्वोच्च नेताओं और प्रधानमंत्रियों से मैं अनुरोध करता रहा हूं कि हिंदी थोपने की बजाय आप सिर्फ अंग्रेजी हटाने का काम करें। अंग्रेजी हटेगी तो अपने आप हिंदी आएगी। उसके अलावा कौनसी भाषा ऐसी है, जो भारत की दो दर्जन भाषाओं के बीच सेतु का काम कर सकेगी? लेकिन हमारे नौकरशाहों और बुद्धिजीवियों के दिमाग पर अंग्रेजी की गुलामी इस तरह छाई हुई है कि उनकी देखादेखी किसी प्रधानमंत्री या शिक्षामंत्री की आज तक हिम्मत नहीं पड़ी कि वह ‘अंग्रेजी हटाओ’ की बात करे।
गृहमंत्री अमित शाह ने अपने भाषणों में हिंदी थोपने की बात कभी नहीं की है लेकिन देश के हिंदी-विरोधी नेता मनगढंत तथ्यों के आधार पर उनकी बातों का विरोध कर रहे हैं। मुझे तो आश्चर्य है कि इस मुद्दे पर कांग्रेस-जैसी पार्टी चुप क्यों है? कम से कम वह गांधी नाम की इज्जत बचाए। महात्मा गांधी ने तो यहां तक कहा था कि स्वतंत्र भारत की संसद में जो अंग्रेजी में बोलेगा, उसे हम छह माह की जेल करा देंगे। समाजवाद के पुरोधा डॉ. राममनोहर लोहिया ने तो देश में बाकायदा अंग्रेजी हटाओ आंदोलन चला दिया था लेकिन उ.प्र. की समाजवादी पार्टी भी इस मुद्दे पर मौन धारण किए हुए है।