उत्तराखंड

अजय ढोंडियाल की मखमली आवाज़ व पांडवाज के संगीत से सजा गीत “संध्या झूली” मचा रहा धूम

देहरादून। अजय ढोंडियाल का अंदाज अलग अलग फ्रेम में देखने में समझ में नहीं आ सकता। लेकिन जो उन्हें संपूर्णता में देख सकता हो वह उनके अंदर की प्रतिभा को समझ सकता है। कह सकते हैं कि वह अपने राज्य उत्तराखंड के एक अद्भुत व्यक्तित्व हैं। ईश्वर ने उन्हें ऐसी सुंदर पहाडी आवाज दी है कि लगता है कोई भूपेन हजारिका उत्तराखंड के ऊंचे शिखरों में बैठा भूला हुआ सा कोई लोकगीत गुनगुना रहा हो। बहुत से लोगों को डिंपल कपाड़ियां का अभिनय रुदाली फिल्म के लिए थियेटर में लाया होगा। लेकिन हम जैसे बहुत लोग थे जिन्होंने भूपेन दा के असमी गीतों के माधुर्य में खोए रुदाली में अपने भूपेन दा को सुनने आए थे। और बड़े से थियेटर में दिल हूम हूम करे गीत गूंजा था तो मन को अथाह सुकून मिला था। आप कहेंगे बात भूपेन दा की है या फिर अजय ढोंडियाल की।

लेकिन अजय ढोंडियाल पर कहते कहते मुझे अगर भूपेन हजारिका याद आ गए तो इसके पीछे एक कारण हैं। असम की माटी में जो आवाज गाने की शैली परंपरा संस्कृति का गहरा लगाव भूपेन हजारिका में पाया वही रह रह कर अजय ढोंडियाल में पाया। अगर गीत संगीत की इस रवायत को अजय ढोंडियाल ने थोड़ा करीने से सजाया होता, थोड़ा सांस्कृतिक जीवन की कसौटियों पर संभल कर चला होता तो वे निश्चित ऐसी ही ख्याति के हकदार थे जो भूपेन दा के साथ जुड़ी चली आई।

विख्यात लोक गायक हीरासिंह राणा को अपना आचार्य मानने वाले अजय ढोंडियाल ने उनके गीतों को गाया। उसी बेफ्रिकी वाले अंदाज में। इसलिए अब डोभाल बंधु ने हीरा सिंह राणा के गाए ओ संध्या झूली रे छो भागी वाना नीलकंठ हिमाला। ईशांन और संजय डोभाल ने पांडवाज ग्रुप के साथ उत्तराखंड के गीत संगीत पर जिस तरह काम किया है वो मन को भाता है। बदलते समय के साथ वो अपने साथ नए साज भी लाए हैं लेकिन वो ये भी समझते हैं कि पहाडों के जीवन से बांसुरी मशकबीन हुडका का किस तरह का राग जुडा है। यहां भी उनके संगीत और अजयजी के गायन की वही दिव्यता है। गीत संगीत का यह अंदाज नई पीढ़ी को भी अपना लगता है । खासकर इस गीत में कोरस का प्रयोग मन को भाता है। इस गीत मे पहाडों के स्वर है। गीत के प्रारंभ में न्यूली जैसा जो लंबा अलाप है उतार चढाव है वो अजय ढोंडियाल के गायन की सिद्धता को बताता है। अजब है कि आज भी वो इस तरह गा लेते हैं।

पहाड़ों में सुंदर आवाज झरनों का सा स्वर मिल जाया करता है। हिमालयी जीवन में ही संगीत है। पर यायावरी और थोड़ा बेफ्रिक्री से जीवन ने अजय ढोंडियाल के उसी व्यक्तित्व को पूरी तरह सामने नहीं आने दिया। बस वो क्या तो या तो बहुत पुराने जानकार कद्रदान जान पाए या फिर वो जो उनके बहुत करीब रहे। जिनको पता रहा कि अपने आत्मीय क्षणों में जब अजय ढोंडियाल कुछ गाते हैं तो फिर उनके स्वर किस लोक में ले जाते हैं। वरना वो बहुत जल्दी किसी के लिए समझ में न आने वाले विरल इंसान भी है। बस इतना कहना काफी होगा कि एक समय वह अपने समकालीन कलाकारों से ज्यादा पारश्रमिक पाते थे। और सांस्कृतिक संध्या उनके नाम पर झिलमिलाती थी। हो संकता है कि गीत संगीत की दुनिया के अपने जिन दांव पेंचों मे रहती है उनमें उलझना उन्हें ज्यादा ठीक नहीं लगा।

बस उन्होंने कुछ गाया अपने साथियो के बीच गाया। इतना जरूर बताए कि लोककला की उन्हं गहरी परख रही है। उत्तराखंड के जिस असली लोकसंगीत से जनमानस अपने जीवन की लय जोड़ता रहा उसकी उन्हें परख रही। इसलिए एक छोर में वह गोपाल बाबू गोस्वामी के लोकसंगीत में भाव विभोर रहे तो दूसरी ओर केशव अनुरागी राहीजी उनके लिए आदर्श रहे। और हीरा सिंह राणा तो उनके गुरु ही थे। वही फक्कडफन वही अपनी संस्कृति को तलाशने की ललक वहीं आवाज वही आलाप । बस जो सुने वो उस स्वर लहरी में मुग्ध हो जाए। आखिर इस आवाज की कद्र अगर डोभाल बंधु नहीं करते तो कौन करता। डोभाल बंधु जिस तरह के संगीत को रचते हैं उसमें जिस आवाज के लिए चाहत रही होगी वह अजय ढोंडियाल के रूप में सामने आई है। पूरे पहाड को हिमालय को भाव विभोर करने के लिए रुकिए यह तो उनका लोककला गीत संगीत वाला परिचय है।

इतना भर कहां। क्या कहें वो टीवी मीडिया के ऐसे शानदार पत्रकार है जो विलक्षण कलाकार हैं या फिर कहें कि वो ऐसे कलाकार है जो मीडिया में विलक्षण पत्रकार है। टीवी पत्रकारिता में जिन्होंने उनके साथ काम किया उनके साथ रहे वो उनके हुनर को बताते हैं । आकर्षक हैंडिग , बेहतरीन पैकेज लिखने लिखवाने का हुनर कटेंट सब एकदम फिट । और पत्रकार की जो बेशकीमती ठसक होती है वो उनमें दिखती रही। यह ठसक दंबगई से अलग होती है। यह ठसक ब्लेकमेलिंग वाली दुनिया से अलग होती है।इस बिंदासपन का अपना रुतबा होता है, अपना सम्मान होता है। पत्रकारिता में यही सम्मान अजय ढोंडियाल ने पाया। पर यहां भी समय की पगंड़डियों पर चलते हुए वह आपना तारतम्य नहीं बिठा पाए।

बल्कि कहें तो टीवी पत्रकारिता की कसौटियों में कुछ अपनी रिद्म ताल नहीं बिठा पाए। लेकिन उनके हुनर को सबने माना। वो बेहद संजीदा पत्रकार है। और उत्तराखंड में जो वाकई पत्रकार है वो जानते हैं कि अजय ढोंडियाल के होने का आशय क्या है। एक सधा हुआ बेहतर पत्रकार एक विलक्षण गायक हमारे लिए बेहद खुशी की बात यह है कि डोभाल बंधु ने उनका एक गीत लेकर आए हैं। और ऐसे समय में मुझे लगा कि मैं अजय ढोंडियाल के बारे में कुछ कह सकूं तो अच्छा। गीत तो आप तक पहुंचा है। और आपने उसमें अपने पहाड को उस रौतेले से जीवन को फिर से महसूस करेंगे। अभी उनके लिए शुभकामना।

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